top of page
Writer's pictureAvik

बीते लम्हे | Beete Lamhe

Updated: May 7, 2021

बीते लम्हे

धुआं धुआं सा रह गया,

ये वक़्त, इतना सब सेह गया,

पीछे मुड़ा आज तो ख़ामोशी ही ख़ामोशी नज़र आती है,

बीते लम्हो के छाओं से चेहरे पर एक दबी सी मुस्कान आ जाती है,

रात के अँधेरे में आज लगता है डर,

निकला तो हूँ पर क्या शाम को पोहोंच पाउँगा घर??

आज फिर बेख़ौफ़ होने को दिल चाहता है,

धुआं ये जाते नहीं अब ज़ेहन में बस यही ख़याल आता है,

कभी तो बादल बरसेंगें,

कब तक उम्मीद लगाए हम सब तरसेंगे,

आज एक दफा फिर ये दिल कहता है,

बेपरवाह होके जीना अब भी रहता है|


लेखक

अविक

BOOKS YOU MUST READ


55 views0 comments

Recent Posts

See All

Comentarii


Subscribe For Latest Updates

Thanks for subscribing!

bottom of page