एक दरख़्वास्त
ढल रही है शाम,
और रात आने को है।
बहर-ए-नूर समेट कर
चांद आने को है।
दिल के तहखाने में अक्सर
दबे ही रह जाते हैं,
शायद दिल से लबों पर
कुछ जज़्बात आने को हैं।
यूं तो बीत गए
कई लम्हे यूं ही,
पर यह लम्हा ठहराने को
एक दरख़्वास्त आने को है।|
लेखिका
Book For Kids-
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