एक सपना।
एक सपना जो हमने देखा था,
नहीं - नहीं , जो मैंने देखा था,
अब ठीक ?
क्या उसे अब जाने देना चाहिए ?
जो भी था, थोड़ा ही सही अच्छा तो था |
तो जाने दूँ क्या ?
वो बिता हुआ कल, जो बीतता ही नहीं है,
किसी न किसी बहाने, सामने आ जाता है,
मुझ पर व्यंग करता है।
हाँ , सच !
मैं नहीं बुनती हूँ अब,
तुम्हारे ख्वाबों की मख़मली चादर।
फिर भी, तुम चले आते हो,
किसी गली, किसी मोड़ से मुड़कर,
अचानक ही, आदतन।
लेखिका
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