चलना ही तो जीवन है , रुकना मौत समान है।
जीवन का छण छण बीत रहा,
हर छण में तु कुछ सीख रहा,
पुष्प रुपी जीवन को अपने,
आँसुओं से तु सींच रहा,
मंज़िल तुझसे है दूर बड़ी,
विपदाओं से है घिरी पड़ी,
मंज़िल पथ काँटों से भरा है,
चलना जिसपर मुश्किल बड़ा है,
पर एक छण को ना भूल तु,
चलना ही तो जीवन है, रुकना मौत समान है।।
तू देख सागर की लहरों को,
एक पल को भी न ठहरे जो,
तु देख दिनकर कि किरणों को,
जो मिलती है प्रतिदिन जीवन को,
तु देख दिपक के जलते लौ को,
जो दूर करे अँधेरे को,
आगे बढ़ते अपने पग को,
एक पल को ना विश्राम दे,
चलना ही तो जीवन है, रुकना मौत समान है।।
कुछ कर ऐसा जो मिसाल बने,
रच व्यक्तित्व ऐसा जो विशाल बने,
तेरे अपने भी तुझपर गर्व करे,
तेरा जीवन भी एक पर्व बने,
तु पथ की विपदाओं से लड़ता जा,
जल प्रवाह सा आगे बढ़ता जा,
मत भूल , हारना तो एक कोशिश है,
जीत जिसका परिणाम है,
चलना ही तो जीवन है, रुकना मौत समान है।।
थक हार कर बैठा है तू,
सपनों को मारकर बैठा है तू,
गति नहीं क्या तेरे पंखों में
उड़ने से क्यों डरता है तू?
सतत आगे बढ़ने से ही तुझको सम्मान मिलेगा,
उड़ने की कोशिश तो कर तुझको आसमान मिलेगा,
तेरी इच्छाओं से बड़ा तेरा स्वाभिमान है,
चलना ही तो जीवन है, रुकना मौत समान है।।
कवि
Kya bat h Sanjay